Jharkhand ke 32 Janjati Samaj

Let’s start this post -Jharkhand ke 32 Janjati Samaj (जनजाति समाज )

INTRODUCTION

झारखण्ड में  32  जनजाति समाज  निवास करते है , जो अपने भेषभूसा और रहन -सहन से जाने जाते है –

1 .मुंडा प्रशासनमुंडा अपनी  भाषा को होडो जागर कहते हैं। ये रांची ,खूँटी ,हज़ारीबाग़ ,गुमला ,सिमडेगा ,गिरिडीह ,सिंहभूम ,और संथाल परगना में निवास करते है। 

मुंडा की राजवयवस्था नागवंशियों में हस्तांतरित है ,प्रथम नागवंशी राजा -फणि मुकुट राय थे। 

  • मुंडा समाज के तीन विशेष स्थल होते है –
  1. सरना -जहाँ इनके ग्राम देवता निवास करते है। 
  2. अखड़ा -जहाँ पंचायत की बैठक और युवतिया एकत्र होकर कर्मा आदि त्यौहारों में नाचती है। 
  3. सासन – जो समाधी स्थान होता है ,यहाँ  शवों को दफनाया जाता है , समाधी स्थान पर पत्थर  शील रखे होते है,जिसे ससनदीरी कहते हैं। 

मुंडा जनजाति गांव के युवागृह को गीतिओरा कहा जाता है। 

  • एक ग्राम पंचायत का प्रमुख मुंडा होता है। 
  • कई ग्राम पंचायत का प्रमुख- मानकी होता है। 
  • कई पट्टियों को मिला कर पड़हा बनाया  है। 

 

2 .मांझी शासन व्यवस्था झारखण्ड में इन्हे संथाल भी कहा जाता है ,इनकी जनसंख्या झारखंड के जनजातियों में सबसे अधिक है। 

अंग्रेज शासन कल में सरदार /नायक मांझी को मान्यता था। 

गांव के प्रधान को मांझी कहा जाता है और धर्मिक प्रधान को नायके कहा जाता है। जोगमांझी -समाज के लोगो के आचरण पर निगाह  है। 

सरदार -पुरे इलाका की जिम्मेदारी लेता है। संथालो का कड़ी सज्जा – बीटलाहा ( सामाजिक वहिष्कार )

5 -8  गाँवो के मांझी को देशमांझी कहते है ,जिन मामलों का निपटारा मांझी नहीं कर दशमांझी को भेजा जाता है। 

15 -20 गाँवो को मिला कर परगना बनता है ,इसका प्रधान परगनैत कहलाता है। 

देश मांझी परगनैत  का सहायक होता है।शादी विवाह के मामलो में तो जोग मांझी ही निर्णय सुनाता है, तथा धार्मिक अपराधो में नायके ही फैसला सुनाता है। 

 

3 .खड़िया शासन व्यवस्था(डोकलो शोहेर शासन )-ये  गुमला ,सिमडेगा ,रांची ,ओडिशा ,छतीसगढ़ में पाए जाते है। 

तीन प्रकार के होते है –

  1. पहाड़ी खड़िया 
  2. दुध खड़िया 
  3. ढलकी खड़िया 

स्वशासन वयवस्था में गांव के प्रमुख व्यक्ति महतो कहलाता है। पर्व -त्योहारों में पूजा- पाठ पहान  करता है। 

गांव  के नेता और संचालक -करटाहा कहलाता है ,गाओं के झगड़ो का निपटारा भी यही करता है। 

गोत्र -डुंगडुंग /कुल्लु /टेटे /बा /केरकेट्टा /सोरेंग /किंडो /टोप्पो /विलुंग। 

अपनी समस्याओ का समाधान हेतु अखिल भारतीय महासभा गठन किया जाया जिसे -डोकलो  कहा जाता है। 

डोकलो का सभा पति जो संपूर्ण खड़िया समाज का राजा होता है ,डोकलो शोहेर कहलाता है। 

खड़िया भाषा में डोकलो का अर्थ – बैठक , शोहेर का अर्थ -अध्यक्ष होता है। डोकलो शोहेर का कार्यकाल 3  साल  का होता है। 

 

4 .उरांव शासन व्यवस्थाउरांव धार्मिक कार्यो को करने वाला पहान ,बाद में उसकी सहायक के लिए दूसरे मुखिया का चयन हुआ वह महतो कहलाया। 

महतो से पहले बेगा द्वारा किया जाता था। 

पड़हा का गठन – 7 ,12 ,21 ,22 गांवो को मिलाकर होता है,जिसका मुखिया राजा कहलाता था। 

  • पड़हा गांव में एक -राजा गांव 
  • दूसरा -दीवान गांव 
  • तीसरा – प्रजा गांव  होता है। 

 

 5 .हो शासन व्यवस्था-   मुख्यतया कोल्हान में पाया जाता है। 

गांव का प्रधान मुंडा ,सहायक – डाकुआ कई गाँवो  को मिलाकर ग्रामपंचायत  बनती है जिसे  पीड़  है ,जिसका प्रधान मंकी होता है। 

एक पीड़ में  5 -10 गांव  हैं।  हो का इतिहास गौरवशाली रहा है उस समये के अंग्रेज अफसर ने लिखा है ,की कोल्हान के लोगो को लड़ाई से नहीं जीता जा सकता  हैा  तभी विल्किंसन  कानून के माध्यम से अंग्रेजो ने इनसे संधि की और इनकी स्वशासन प्रणाली को मान्यता दी  गई। काफी संघर्ष की जिसके कारण आज यह क्षेत्र आदिवासी स्वशासन की जिवंत भूमि है।

 

6 .असुर जनजाति की शासन व्यवस्था –  भाषा – आसुरी आसुरी पंचायत के अधिकारी – महतो ,बैगा ,पुजार ,गोडाइत आदि।

 

7 . बाजरा जनजाति की शासन व्यवस्था –  इसका संचालक  नायक होता है। वर्तमान में बंजारा सेवक संघ के नाम से संगठन बनाया  गया  है।

 

8 .बथुड़ी जनजाति की शासन व्यवस्था –  सरदार / मुंडा  उपाधि धारण करते है। इसका मुखिया देहरी कहलाता है।

 

9 .बेदिया जनजाति की शासन व्यवस्था –  रांची , हज़ारीबाग़, बोकारो मुखिया – प्रधान  , कही  – कही  महतो या ओहदार भी कहा जाता है। इनका सहायक गोडेत कहलाता है। 

 

10 .बिझिया जनजाति की शासन व्यवस्था –  रांची , लोहरदगा ,गुमला ,सिमडेगा इनके दौ प्रधान होते है  मादी , जद्दी , मुखिया – कटलहा कहलाता है। 

11 .बिरजिया जनजाति की शासन व्यवस्था-  लातेहार के बरवाडीह ,गारु , महुआटांड़ , बालूमाथ , गड़वा का भंडरिया , गुमला जिला के विशुन पुर तथा लोहरदगा के सिन्हा में  मुखिया – बैगा , बेसरा , धावक ा   

 

12 .बिरहोर जनजाति की शासन व्यवस्था-  हजारबाग़ , चतरा ,कोडरमा ,रांची ,सिमडेगा ,गुमला ,लोहरदगा ,सिंहभूम ,बोकारो ,गिरिडीह और धनबादअड्डी में पाए जाते है।  

मुखिया – नाये  कहलाता है ,सहायक -दिगुआर ,कोतवार। 

 

13 .बैगा जनजाति की शासन व्यवस्था- पलामू , गढ़वा।, रांची , लातेहार , हज़ारबग  जिले में पाया जाता है। 

मुखिया – मुक्क़द्दम  कहलाता है , सहायक – सायना / सींखे। एक सन्देश वाहक होता जिसे चारिदार कहा जाता है। 

 

14 .भूमिज जनजाति की शासन व्यवस्था- सिंहभूम ,रांची ,हज़ारिबाग , चतरा ,कोडरमा ,धनबाद ,बोकारो ,लातेहार ,पलामू ,दुमका ,जामतारा ,देवघर  आदि जिले मर पाए जाते है।  मुखिया – प्रधान होता है। 

 

15 .चेरो जनजाति की शासन व्यवस्था- लातेहार ,  पलामू ,गढ़वा  जिले  में पाये  जाते है। पंचायत गांव ,अंचल , मंडल स्तर पर होता है। गाँवो  का प्रधान – मुखिया , जिला स्तर  पर सभापति। 

 

16.चीक बड़ाईक की शासन व्यवस्था – रांची , खूंटी गुमला ,सिमडेगा ,लोहरदगा में पाए जाते है। गांव के प्रधान ( अधिपति )- राजा कहलाता  है , और सहयक दीवान / पानेर कहे जाते है। मुख्या काम कपडा बुनने का। 

 

17 .गौड़ जनजाति की शासन व्यवस्था –निवास स्थल गौड़वाना क्षेत्र – गुमला ,सिमडेगा पश्चिम  सिंहभूम ,सरायकेला।,पलामू ,गड़वा ,लातेहार गिरिडीह ,धनबाद ,बोकारो आदि।  गौड़ की भाषा गौड़ी जिसे द्रविड़ परिवार का अंग मन जाता है। बिल्चक सदरी नागपुरी। पंचायत का मुखिया – बैगा / सायना  कहा जाता है। 

 

18 .गौड़ायत जनजाति की  शासन व्यवस्था- गौड़ैत /गोडाइयत  कहा जाता है ,भाषा आस्ट्रिक भाषा परिवार के वर्ग से आता है। जिसे अस्थानिये भाषा में मुंडा भाषा कहा जाता है।  रांची हज़ारीबाग़ , सिंहभूम , धनबाद , पलामू संथाल परगना में निवेश करते है। प्राची काल में पहरेदारी का काम करते थे। 

 

19 .करमाली जनजाति की शासन व्यवस्था- भाषा -कुरमाली , शिल्पकार होते है। हज़ारीबाग , संथाल परगना ,रांची ,बोकारो ,सिंहभूम में पाए जाते हैं। ग्राम स्तर पर जातीय पंचायत का मुखिया ( प्रमुख -) मालिक कहलाता है।  जतिन समस्याओ का निपटारा के लिए  सत  गवइया  पंचायत बैठती है| 

 

20 .कंवर जनजाति की शासन व्यवस्था- पंचायत की मुखिया – सायना कहलाता है। , गुमला सिमडेगा , पलामू ,  जाते है। 

 

21 .खरवार जनजाति की शासन व्यवस्था- पलामू गढ़वा ,लोहरदगा ,रांची ,हज़ारीबाग ,चतरा  पाए जाते है। खरवार समाज में परम्परगत जातीय पंचायत पाई जाती है। गाओं का वरिस्ट व्यक्ति इसका मुखिया होता है। इनकी अंतर ग्रामीण पंचयात भी होती है जिसे चट्टी – पट्टी।  पचौरा – सतौरा कहते है ,

  • चार गांव – चट्टी 
  • पांच गांव – पचौरा 
  • सात गांव – सतौरा  पंचयत होता है। पंचयत का निर्णय मान्य होता है। 

 

22 खोड़ जनजाति (द्रविड़ प्रजाति )की शासन व्यवस्था- संथाल परगना ,उत्तरी छोटानागपुर परमंडल , दक्षिणी छोटानागपुर परमंडल में पायी जाती है। खोड़ की बोली कौंधी कहलाती है। पुराने ज़माने में खोड़ में नर बलि प्रथा पाई जाती है , जिसे मरियाह प्रथा कहा जाता था। इसका मुखिया  गौटिया  कहलाता है। 

 

23 . किसान  जनजाति की शासन व्यवस्था- ये अपने को नगेशिया कहते है , पलामू , रांची , सिंहभूम , लोहरदगा आदि जिले में पाई  जाती  है। इनका पहचान किसान के रूप में बानी है।  पंचायत /  ग्राम पंचयत पाई जाती है। 

 

24 .कोल जनजाति की शासन व्यवस्था-दुमका देवघर।,गिरिडीह ,आदि जिले में पाई जाती है। बी  रक्त समूह की आदिकता पायी जाती है 

सरना धर्म के अनुआई है तथा सींग बोंगा को सर्वशक्ति मान देवता मानते है , परम्परागत पंचाट होती है। मुखिया – मांझी कहा जाता है। 

 

25 .कोड़ा जनजाति की शासन व्यवस्था- 1872  की पहली जनगणना में 18 जनजाति में शामिल था। कोरा शब्द जनजाति सूचि में 1931 में शामिल किया गया था। कोड़ा  का शब्दिकअर्थ मुंडारी में -मिटटी कोडना / काटना ,. हज़ारीबाग ,बोकारो , धनबाद , सिंहभूम , संथाल परगना में पायी जाती है।  ग्राम पंचायत होता है जिसका मुखिया – महतो होता है , महतो के सहायक प्रमाणिक और जोग मांझी होते है , पंचयत का निर्णय सभी को मान्य   होता है।

 

26 .कोरबा  जनजाति की शासन व्यवस्था- गढ़वा , पलामू , लातेहार में पाई जाती है ,  जाती पंचायत होती है  जिसका मुखिया – प्रधान होता है। 

 

27 .लोहरा  जनजाति की शासन व्यवस्था-रांची , गुमला , सिमडेगा , लोहदगा , सिंहभूम ,संथाल परगना  हज़ारीबाग  धनबाद ,बोकारो , गिरिडीह आदि जिले में पाई जाती है। पेशा – लौहारी  जाती पंचायत  होती है है। 

 

28 .महली जनजाति की शासन व्यवस्था- महली झारखण्ड की शिल्पी जनजाति है वह बांस की कला में दक्ष है।  रांची ,लोहरदगा ,गुमला ,सिमडेगा ,संथाल परगना ,हज़ारीबाग ,धनबाद ,आदि में पाई जाती है।  बी रक्त  ग्रुप की अधिकता   है।  संथाल क्षेत्र में प्रधान /परगनैत, ,मुंडा क्षेत्र में मुंडा मुखिया ही महली का भी मुखिया होता है। दो 

 

29 माल पहाड़िया जनजाति की शासन व्यवस्था-दो शाखा – 1 माल पहाड़िया , 2 सौरिया पहाड़िया  (मलेर भी कहा जाता है )  भाषा -मालतो, मुख्यतः संथाल  परगना  के दुमका , जामतारा ,गोड्डा ,देवघर ,पाकुड़ आदि में पाई जाती है। गांव का मांझी कहलाता है। वही  पंचायत का प्रधान  होता है। सहायक – गौड़ैत / दीवान होते है ,कुछ क्षेत्र में प्रमाणिक कहते है।  इसके बीच बीतलाहा  प्रथा  नहीं है।

 

30 .सौरिया पहाड़िया जनजाति की शासन व्यवस्था-ये अपने को मलेर कहते है , भाषा – मालतो है ,संथाल परगना – साहेबगंज , पाकुड़ ,दुमका ,जामतारा ,गोड्डा ,और देवघर जिले में पायी।  है। गांव का प्रधान – मांझी  है , गांव का मुखिया और पुजारी मांझी होता है , सहायक  गिरी , कोतवार ,भंडारी ,गौड़ैत  कहा जाता है। 15 -20 गांवो  में एक नायक तथा  70 -80  गांवो  में एक सरदार  होता है। सरदार  पर पुरे इलाके का जिम्मेदारी रहती है। अंग्रजो  शासन काल  में सरदार , नायक और मांझी को मान्यता मिली हुई थी। 

 

31 .पहरिया जनजाति की शासन व्यवस्था- ये पलामू के पहाड़ियों में पायी जाती है , लातेहार , ,पलामू, गढ़वा   हज़ारीबाग़ के  पायी  जाती है। गांव  का मुखिया – महतो तथा सहायक -खातों होता है , हर गांव  होता है उसे भैयारी /जातिगोड़ कहते है। 8 -10 गांव  मिलाकर अंतर ग्रामीण पंचायत बनती है जिसे  कारा भैयारी कहा जाता है , जो गाँवो के झगड़ो का निपटारा  करते है।

 

32 .सबर जनजाति की शासन व्यवस्था-ये पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम में  पाई जाती है , इसके अलावा गिरिडीह , धनबाद , बोकारो , गुमला , रांची  लोहरदगा   मिलती है सबर की चार उपजाति है -जिसमे तीन उडिसा में – झरा, बासु ,जटापति और चौथी उपजाति जाहरा झारखण्ड  धालभूम आ बसी है। अपना परम्परगत पंचयत होती है जिसका प्रमुख – प्रधान होता है , सहायक  गोडाइत  होता है ,जो सन्देश वाहक का काम करता है। 

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