Jharkhand Movement (झारखण्ड के आंदोलन )

 -Jharkhand Movement (झारखण्ड के आंदोलन ) –

Jharkhand movement

 

बिरसा मुंडाब्रिटिश शासन ,जमीनदारो और महाजनो के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे बिरसा  उलगुलाल के नाम से जाना जाता है।

बिरसा मुंडा  का जन्म -15  नवम्बर 1875 को खूंटी जिला के उलिहातू गांव  में हुआ था , पिता – सुगना मुंडा।  माता – कर्मी हाटु 

  • बिरसा का नारा – रानी का शासन ख़त्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो !
  • हम ब्रिटिश शासन तंत्र के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते है और कभी अंग्रेजों के नियमो  का पालन नहीं करेंगे !

अंग्रेज सरकार  ने बिरसा की गिरफ़्तारी पर500  रुपये का इनाम रखा था। 

अंग्रेज सरकार ने विद्रोह का  दमन के लिए  3  फरवरी 1900  को बिरसा को गिरफ़्तार कर लिया गया, जब वे अपनी आदिवासी  गुरिल्लाह सेना के साथ जंगल में सो रहे थे। उस समय लगभग 460  आदिवासियों को भी उनके साथ गिरफ़्तार किया गया। 

9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी रहस्य्मय तरीके से मौत हो गई ,और अंग्रेजो ने मौत का कारण  हैजा  बताया , जबकि हैजा का कोई लक्षन नहीं था। 

केवल 25  वर्ष की आयु में उन्होंने ऐसा काम कर दिया की आज तक बिहार , झारखण्ड और ओडिशा की आदिवासी समाज उनको याद् करते है, ओर  उनके नाम पर कई शिक्षण संस्थानों के नाम रखे गए है। 

 

विभिन्न आंदोलन  जैसे 

1766 -राजमाहल  पहाड़िया जनजाति विद्रोह

1767 – अंग्रेजो का सिंघभूम प्रवेश 

1769  -चुआर विद्रोह 

1771 -ईस्ट इंडिया कंपनी को झारखण्ड का पूर्ण शासकीय अधिकार 

1771 -1819 -पलामू  पर आकर्मण और चेरो विद्रोह 

1782 -तमाड़ विद्रोह 

1783-84   -तिलका मांझी आंदोलन 

1806 – जमींदारी पुलिस की शुरुआत 

1820 -1821 -सिंघभूम का हो विद्रोह 

1824 – दामिन ए कोह की स्थापना ( लाह  अनुसन्धान केंद्र की स्थापना (नामकुम ) 

1831 -1832 -कोल विद्रोह (सिंदराय और बिंदराय झारखण्ड कौल विद्रोह  नायक थे )

1834 -भूमिज विद्रोह ( हज़ारीबाग़ जिला की स्थापना )

1845 – ईसाई धर्म का झारखण्ड में प्रवेश 

1855 -1856 – संथाल विद्रोह ( सिध्दू – कान्हू )

1856 – 1857– विश्वनाथ शाही ,गनपत राय ,शेख भिखारी ,वीर बुद्धू भगत  नेतृत्तव  में सिपाही विद्रोह

1857 – हज़ारीबाग़ के भुइया डकैतो का आंदोलन 

 

1895 – 1900 -बिरसा आंदोलन

1914 -तना भगत आंदोलन 

1860 – संथाल परगना में जमीदारी  जुल्म के खिलाफ संथाल विद्रोह 

1869 -1870 – टुंडी में संथाल विद्रोह 

1871 – भगीरथ मांझी के नेतृत्व में खरवार आंदोलन 

1875 -1895 -छोटा नागपुर में सरदार आंदोलन 

1875 – इंडियन फारेस्ट एक्ट लागु किया गया 

1880 –  तेलंगा खड़िया  आंदोलन

1881 -1882 -पलामू में कोरवा विद्रोह 

1895 -1900  बिरसा आंदोलन 

1902 – सरायकेला में संथाल विद्रोह 

1902 -1910 – सर्वे और सेटलमेंट कार्य 

1903 -छोटानागपुर काश्तकारी  अधिनियम  बन कर तैयार 

1908 – छोटानागपुर काश्तकारी  अधिनियम लागु 

1930 – सायमन कमीशन रिपोर्ट के अन्तर्गत इस क्षेत्र के विकाश हेतु अलग प्रशासन की सिफारिस 

 

1930 -1931 -सिंहभूम का हरी बाबा  आंदोलन 

1931 – किसान सभा का गठन , छोटानागपुर कैथोलिक सभा का गठन 

1932 -रांची में गवर्नर हाउस का निर्माण 

1936 – उड़ीसा, बिहार से अलग हुआ जिसे  कुछ हिस्सा उड़ीसा को मिला 

1938 – आदिवासी सभा का गठन 

1941 -पंडित रघुनाथ मुर्मू के द्वारा संथाली लिपि का अविष्कार  तथा ओल चेमेट नमक पत्रिका में प्रकाशन 

1942 – के भारत छोडो आंदोलन का रांची , जुमला लोहरदगा गिरिडीह ,धनबाद आदि पर प्रभाव 

1947 – 28 दिसम्बर  1947 को आल इंडिया झारखण्ड पार्टी का गठन 

1955 – राज्य पुनर्गठन के सम्म्मुख झारखण्ड अलग प्रान्त की मांग 

1963 -कांग्रेस पार्टी में झारखण्ड पार्टी का विलय 

1966 -अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिसद का गठन 

1968 -हुल  झारखण्ड पार्टी का गठन 

 

1971 -A.K. RAY दवारा मार्क्सवादी पार्टी का गठन तथा अलग झारखण्ड की मांग , 13  नवंबर 1971 को छोटानागपुर – संथाल परगना स्वसाशी विकास का गठन

1973 -कोयला कारो जलविधुत परियोजना के विरुद आदिवासियों का संधर्ष  , 4 /11 /73  को शिबू सोरेन एवं स्व विनोद विहारी महतो के नेतृत्व में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का गठन। 

1986– ऑल  झारखण्डस्टूडेंट्स यूनियन का गठन ( अध्यक्ष – प्रभाकर तिर्की ,महा सचिव सूर्य सिंह बेसरा मनोनीत।

1887 -झारखण्ड समन्वय समिति का गठन , 8 अगस्त को झामुमो अधयक्ष निर्मल महतो का हत्या

1988 -भाजपा द्वारा अलग वनांचल की मांग

1990 – आजसू  प्रतिमंडल द्वारा भारतसरकार  को अलग राज्य  हेतु ज्ञापन सौपा।  

1995 –  17  अप्रैल को स्वशाषि परिषद विदेयक को राज्यपाल की मंजूरी , 9 जून को झारखण्ड क्षेत्रीय  स्वायत्त परिषद का गठन ,शिबू सोरेन अध्यक्ष् मनोनीत। 

1996 -22  जुलाई  को बिहार विधान सभा द्वारा सर्वसम्मति से पृथक झारखण्ड राज्य प्रस्ताव पारित और इसे केंद्र सरकार  भेजा गया। 

1997 -बिहार विधान सभा में अलग झारखण्ड राज्य के गठन के लिए निर्णय  गया।

1998 -केंद्र में भाजपा सरकार द्वारा 21  अगस्त को पृथक झारखण्ड का विधेयक राष्ट्रपति की समक्ष पेश। 

2000 – 2  अगस्त 2000 को लोक सभा में अलग झारखण्ड राज्य सम्बंधित बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक पारित। 

15 /11 /2000 – झारखण्ड राज्य आस्तित्व में आया , बाबू लाल मरांडी ने प्रथम मुख्या मंत्री के रूप में शपत पत्र  ग्रहण किया। 

प्रमुख विद्रोह – झारखण्ड में कंपनी ( अंग्रेज ) का प्रवेश सन 1767  में हुआ ,तभी से यंहा जनजातियों में असंतोष  व्याप्त  हो गया था| उसपर  भी मुगलो , मराठो ,एवं स्थानीय जमींदारों ने इनका दमन करके इन्हे विरोधी बना दिया था |

तमाड़ विद्रोह 1789 -उरांव  जनजाति के लीगो में विद्रोह की आग भड़का ,और जमींदारों पर टूट पड़ा | 1794 तक  विद्रोहियों ने जमींदारों को इतना भयभीत कर दिया की उन्हीने अंग्रेज सरकार से अपनी रक्षा करने की मदद मांगनी पड़ी थी |

चेरो विद्रोह -1800 -चेरो किसानो ने अपने राजा के विरुद्ध किया था | (चेरो सरदार भूषण सिंह 1802 में मृत्यु )

हो विद्रोह1821 -1822 -छोटानागपुर के हो लोगो ने सिंहभूम राजा जगन्नाथ सिंह के विरोध किया | (अंग्रेजो की निति स्वीकारने  के कारण )

कोल विद्रोह1932 -1933 -यह विद्रोह छोटानागपुर ,पलामू ,सिंहभूम के कई जनजातियों  का संयुक्त विद्रोह था ,  अंग्रेजो के बढ़ते  हस्तक्षेप के खिलाफ  था |

कृषि और शिकार पर आधारित लोगो से मनमाना कर वसूल करते थे और इनकी जमीनों को दिकुओं (बाहरी) को दे दी जाती थी | इस विद्रोह का नेतृत्व  बुध्दू  भगत , सिदराय , विंदराय और सूर्य मुंडा  थे | (कोल विद्रोह के कारण झारखंड़ की शासन व्यवस्था में अंग्रेजो  दवारा सुधार की नींव रखी |

भूमिज विद्रोह1832 -इस विद्रोह को  गंगा नारायण हंगामा  भी कहा जाता है ,यह विद्रोह जनजाति जमींदारों और जनजाति लोगों का संयुक्त  विद्रोह था ,गंगा नारायण के नेतृत्व में किया गया था |

संथाल विद्रोह1855 -1856 – में सिद्धु -कान्हू के नेतृत्व में लड़ा  गया ,सन 1855 हजारों संथालों ने भगंडीह के चुन्नी मांझी के चार पुत्र – सिद्धू ,कान्हू , चाँद ,भैरव के

नेतृत्व में | जिसे संथाल बिप्लव / हूल दिवस के रूप में मनाया जाता है |

1857 का विद्रोह – नीलाम्बर और पीताम्बर ने 1857 का विद्रोह पलामू में किया था |

सरदारी  आंदोलन 1859 -1881 -साफा होर आंदोलन कहा जाता है | इस  आंदोलन  मुख्य उद्देस्य जमींदारों को बहार निकलना , बेगारी प्रथा समाप्त करना तथा भूमि पर लगाये प्रतिबंध का विरोध करना था|    ईसाई धर्म के व्यापक प्रचार के विरुद्ध जनजातिये सुधारवादी  आंदोलन चला |

खरवार आंदोलन1874 -भगीरथ मांझी के नेतृत्व में प्राचीन मूल्यों और जनजातियों  परम्परा को पुनः  स्थापित करना था , भूभि संबधी समस्याओ में सुधार के अलावा सामाजिक कर्मो में सुधार जैसे मंदिरा आदि का विरोध |(पलामू में हुआ )

बिरसा मुंडा आंदोलन 1895 -1900 -यह  आंदोलन झारखण्ड में व्यापक रूप से हुआ था  छः हजार मुंडाओं  को एकत्रित कर बिरसा मिण्डा दवारा अंग्रेजो , जमींदारों मिशनरियों और साहूकारों  के विरुद्ध हुआ था | ( मिशनरियों का बिस्तार 1850 -1895 के बीच  हुआ )

टाना भगत आंदोलन1914 – यह आंदोलन बिरसा आंदोलन से उपजा था।  क्योकि  आंदोलन धार्मिक परम्परा,मांश -मंदिरा का निषेद्य और अधिकारों पर आधारित था  टाना भगत  लोग उरांव जनजाति के शाखा था , महात्मा गाँधी से काफी प्रभावित थे | नेतृत्व जतरा भगत करता  था |

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