KARMA FESTIVAL IN JHARKHAND
करमा पर्व या करम पर्व झारखंड, बिहार ,उडिसा ,पशचिम बँगाल ,छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का प्रमुख त्यौहार है।यह त्यौहार भादो माह की एकादशी( पुर्णीमा )मे मनाया जाता है।
इस मोके पर लोग प्रकृति की पुजा कर अच्छे फसल होने कि कामना करते है,साथ ही बहन अपने भाई कि कुशलता की कामना करती है। करमा पर्व धुमधाम से मनाया जाता है।
करमा त्योहार मनाने का प्रक्रिया –
गांव के कुवांरी कन्याओं के द्वारा अपने सुयोग्य वर्त का पालन कर मनाती है,इस त्यौहार के दिन करम डाल की पुजा की जाती है जो भादो पुर्णिमा के रात 7 से 8 क बीच की जाती है।
इस त्यौहार मनाने के लिए पहला दिन कन्या या बहनो के द्वारा डलीया या टुपा मे नदी का बालु ,कुरथी मिलाकर डलीया मे बौया जाता है,यह करते हुए करमा गीत गा कर करम त्योहार का शुरूआत किया जाता है।उस दिन से बहनें साबून,तेल,बालों मे कंघी ,मसाले से बनी सब्जियों, खटाई आदि के सेवन का निषेद करती है,ये पालन सात दिनों तक करती है,आठवें दिन भादो एकादशी (पुर्णिमा)के दिन गांव के अखरा मे करम डाल ओर कतारी का डाल गाड कर गांव के पहान या पंडित के द्वारा पुजा कर अच्छे फसल होने की कामना तथा बहनें भाइयों के कुशल जीवन की कामना करती है,ओर पुजा समापन कर ,बहनो/कन्याऐ तथा महिलाऐ करम नाच- गान रात भर करती है, तथा पुरुष /लड़के मांदर ,ठोलक ,बाजा आदि बजा कर करम परब मानते है,ओर दूसरे दिन सुबह सात बजे तक करम डाल का विसर्जन तालाब,पोखर आदि मे करती है।डलिया मे जो कुरथी का पौधा उगता है,उसका भी विसर्जन कर देती है,तथा कुछ कुरथी का पौधा गांव की सभी बहनें घर ले आती हैं।जिसे किसान भाई लोग अपने धान की फसलौ मे बिधान के रूप डाल देते है,ताकी फसल अच्छी हो।
करमा पर्व भाई – बहन के बीच मान सम्मान तथा प्यार का प्रतीक और अच्छे फ़सल उगने की कामना का प्रतिक हैा
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